मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट की ओर से चल रहे 13वें सूफी फेस्टिवल में देश-विदेश के श्रोता खुदा की इबादत में खोकर प्रेम के सागर में गोते लगाते रहे। सूफी फेस्ट के दूसरे दिन सुबह जसवंतथड़ा पर एक ओर सूर्य की किरणों मरुधरा की माटी को चूम रही थीं तो दूसरी ओर काश्मीर के फारुख अहमद गनी सुरों के जरिए काश्मीर की वादियों की सैर करा रहे थे। उनके मखमली संगीत में झरनों की कलकल थीं तो फूलों के खिलने की ताजगी। गनी ने कश्मीर की उन रागों को स्वरों दिया जो प्रकृति के साथ ही प्रस्फुटित हुए और आज साज व आवाज के साथ कलाकारों की ओर से गाए-बजाए जा रहे हैं। तीन और चार सुर वाली उन रचनाओं को भी प्रस्तुत किया जो सूफी के दीवानों को खुदा की इबादत में थिरकने को मजबूर कर देती हैं।
शाम 5.15 बजे "रागा बाय द लेक' की प्रस्तुति प्रसिद्ध ध्रुपद गायक और रुद्र वीणा वादक उस्ताद बहाउद्दीन डागर ने दी। उन्होंने पहले इस अनमोल और रेयर इंसट्रूमेंट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह मंदिर प्रथा से शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि वैसे तो वीणा के कई प्रकार हैं लेकिन ध्रुपद के साथ वीणा की संगत खास होती है। उन्होंने उन क्लासिकल रागों को प्रस्तुत किया जो ढलते दिन की वाइब्रेशन के साथ सुकून का अहसास कराती हैं।
अनछुए संगीत की कशिश का अहसास
देश-विदेश के आर्टिस्ट्स ने अपने दिल की गहराइयों से पैदा हुए फोक, क्लासिकल और सूफी म्यूजिक को गले की बारीकियों और इंस्ट्रूमेंट्स के तारों को झंकृत करते हुए प्रस्तुत किया। श्रोताओं ने कोरिया, सेनेगल, तिब्बत, अल्जीरिया के अनछुए संगीत की कशिश का अहसास किया और यूरोप व इस्तांबुल के म्यूजिक ट्रेडिशन का दिल की गहराइयों से दीदार किया। एक ओर आर्टिस्ट अपने यूनिक इंस्ट्रूमेंट्स के साथ सुरों की सरिता बहा रहे थे वहीं युवा लंगा-मांगणियार कलाकार अपने संगीत गुरुओं के साथ पारंपरिक लोक संगीत की प्रस्तुति दे रहे थे। शाम को सूफी यात्रा फना, सूफी प्रेरणा के लिए समर्पित एक संगीत यात्रा के तहत ओमान शेख जिम्बिरा सूफी ब्रदरहुड सेनेगल की ओर से प्रस्तुति दी गई।
कव्वाली में सुनाया "हरियाला बन्ना...'
इस फेस्टिवल में कव्वाली अपनी अहम जगह रहती है और शुक्रवार को जब दानिश हुसैन बदायूनी ने रामपुर और सेहसवान घराने की गायिकी का अंदाज दिखाया तो मारवाड़ की धरा पर प्रेम के फूल खिलते दिखे। राजस्थान के फोक कल्चर को समर्पित करते हुए "हरियाला बन्ना...' को कव्वाली की तर्ज में बांधा और दर्शकों को झूमने पर मजबूर किया। उन्होंने भजन और नज्म के क्लासिकल अंदाज को में पेश किया। "छाप तिलक सब छोड़....' सहित अमीर खुसरो की कई रचनाएं भी पेश कीं।
सूफी संगीत के चरम का अहसास
सूफी फेस्टिवल की शुक्रवार को अंतिम प्रस्तुति हार्ट ऑफ गजल के रूप में हुई जिसमें बॉलीवुड सिंगर कविता सेठ ने हिंदुस्तानी सूफी गजलों की प्रस्तुति दीं। इक तारा..' और 'जीते है चल..' जैसे बॉलीवुड नग्मों के साथ शाम में सूफीयाना रंग घुल गए। सेठ ने अपने सदाबहार संगीत से यहां श्रोताओं को सूफी संगीत के चरम का अहसास करा दिया और इन सुरों में डूबे श्रोता आंखें बंद किए इनमें डूबे रहे। कविता ने अपने गाए बॉलीवुड नग्मों के साथ "मोरा पिया मोसे बोलत नाहीं' और "ओ रे मन तू तो बावरा है' भी सुनाए।
कोरियाई छोटी धुुनों से हुआ ताजगी का फील
साउथ कोरिया के म्यूजिक को प्रस्तुत करने के लिए कोरियन टीम डूओ बड व साथियों ने गायाज्यूम व जंग्गू इंस्ट्रूमेंट की वादन टेक्निक को प्रस्तुत करते हुए कोरियन म्यूजिक को प्रस्तुत किया। कलाकारों ने उत्सव मनाती हुई स्त्री पर आधारित जांगू म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट पर कोरियन संगीत विरासत को समर्पित प्रस्तुति दी। कलाकारों ने बताया कि कोरियन म्यूजिक छोटी और सुंदर रचनाओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध है और हमारे संगीत में ही जीवन के हर रंग को देखा जा सकता है।